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Shrimad Bhagavad Gita In Hindi By Gita Press Gorakhpur

Book
  • Bhagavad Gita In Hindi By Gita Press Gorakhpur
Author
  • Gitapress
Binding
  • Paperback
Publishing Date
  • 2018
Publisher
  • Gita Press Gorakhpur
Edition
  • 2
Number of Pages
  • 200
Language
  • Sanskrit

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Description

📙 श्रीमद्भगवद्गीता 🚩

गीता पढ़ने से पहले अवश्य पढ़ें👇

गीता विश्व का वह महानतम ग्रन्थ है जिसे सर्वाधिक भाषाओं में अनुवादित व प्रकाशित किया गया है। गीता का अनुसरण सभी देशों के नागरिक, जाति-धर्म, वर्ण व कर्म से अलग होने पर भी करते हैं। गीता वह शास्त्र है जिसमे किसी पंथ विशेष की नहीं अपितु सम्पूर्ण मानवता को बुद्धि, कर्म, ज्ञान, अध्यात्म की व्यापक चर्चा तथा विचारों का गुंथन किया गया है। परस्पर विरोधी दिखाई देने वाले अनेक विश्वासों को भी सीधे साधे ढंग से एक जगह गूँथ कर सरल भाषा में संजोने का और मानव जाति के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने का ग्रन्थ है गीता। यह व्यक्ति को आत्मिक कल्याण मार्ग ढूंढने के लिए अलग अलग जगह भटकने से बचाने का शास्त्र है।
गीता के अनेक नाम —–
गीता गंगा च गायत्री सीता सत्या सरस्वती। ब्रह्मविद्या ब्रह्मवल्ली त्रिसंध्या मुक्तगेहिनी। ।
अर्धमात्रा चिदानन्दा भवघ्नी भयनाशिनी। वेदत्रयी पराSनन्ता तत्वार्थज्ञानमंजरी। ।
इत्येतानि जपेन्नित्यं नरो निश्चलमानसः। ज्ञानसिद्धिं लभेच्छीघ्रं तथान्ते परमं पदम्। ।
गीता, गंगा, गायत्री, सीता, सत्या, सरस्वती, ब्रह्म विद्या, ब्रह्मवल्ली, त्रिसंध्या, मुक्तगेहिनी, अर्धमात्रा, चिदानन्दा, भवघ्नी, भयनाशिनी, वेदत्रयी, परा, अनन्ता और तत्वार्थज्ञानमंजरी –यह सब गीता के अठारह नाम हैं। इनका स्थिर मन से नित्य जाप करने से शीघ्र ज्ञानसिद्धि और अंत में परम पद प्राप्त होना ऋषियों द्वारा कहा गया है।
ब्रह्मपुराण के अनुसार गीता का जन्म मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को माना जाता है। इस दिन को मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है।

श्रीमद्भागवत गीता  के विषय में जानने योग्य विचार
🔸भगवान श्री कृष्ण कहते हैं गीता मेरा हृदय है गीता मेरा उत्तम सार है गीता मेरा अति उग्र ज्ञान है गीता मेरा अविनाशी ज्ञान है गीता मेरा श्रेष्ठ निवास स्थान है गीता मेरा परम पद है गीता मेरा परम रहस्य है गीता मेरा परम गुरु है
गीता मे हृदयं पार्थ गीता मे सारमुत्तमम्।
गीता मे ज्ञानमत्युग्रं गीता मे ज्ञानमव्ययम्॥
गीता मे चोत्तमं स्थानं गीता मे परमं पदम्।
गीता मे परमं गुह्यं गीता मे परमो गुरुः॥
 
🔸 महर्षि वेदव्यास जी कहते हैं:  जो अपने आप श्री विष्णु भगवान के मुख कमल से निकली हुई है वह गीता अच्छी तरह कंठस्थ करना चाहिए अन्य शास्त्रों के विस्तार से क्या लाभ

🔸 श्रीमद् आद्य शंकराचार्य : गाने योग्य तो श्रीगीता का और श्रीविष्णुसहस्त्रनाम का गान है, धरने योग्य तो विष्णु भगवान का ध्यान है, चित्त तो सज्जनों के संग में पिरोने योग्य है और वित्त तो दीन दुखियों को देने योग्य है।

🔸 संत ज्ञानेश्वर गीता में वेदों के तीनों कांड स्पष्ट किए गए हैं अतः वह मूर्तिमान वेद रूप है और उदारता में तो वह वेद से भी अधिक है। अगर कोई दूसरों को गीता ग्रंथ देता है तो जानो कि उसने लोगों के लिए मोक्षसुख का सदाव्रत खोला है। गीता रूपी माता से मनुष्य रूपी बच्चे विमुख होकर भटक रहे हैं अतः उनका मिलन कराना यह तो सर्व सज्जनों का मुख्य धर्म है।

🔸 स्वामी विवेकानंद श्रीमद्भागवत गीता उपनिषद रूपी बगीचों में से चुने हुए आध्यात्मिक सत्यरूपी पुष्पों से गुंछा हुआ पुष्पगुच्छ है।

🔸 महामना मालवीय जी इस अद्भुतग्रंथ के 18 छोटे अध्यायों में इतना सारा सत्य, इतना सारा ज्ञान और इतने सारे उच्च, गंभीर तथा सात्विक विचार भरे हैं कि वे मनुष्य को निम्न से निम्न दशा में से उठाकर देवता के स्थान पर बिठाने की शक्ति रखते हैं। वह पुरुष तथा स्त्री बहुत भाग्यशाली हैं जिनको इस संसार में अंधकार से भरे हुए सकरे मार्गों में प्रकाश देने वाला यह छोटा सा लेकिन अकूत तेल से भरा हुआ धर्मप्रदीप प्राप्त हुआ है।

 

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